Aam Aadmi Party History: A Journey Through Politics
आम आदमी पार्टी की कहानी शुरू होती है 2011 में उस टाइम अन्ना हजारी की देखरेख में इंडिया अगेंस्ट करप्शन का एक मूवमेंट चल रहा था। पूरे इंडिया में लोग इस मूवमेंट के लिए और अन्ना हजारे के लिए कैंडल मार्च निकाल रहे थे। सेंटर में उस टाइम गवर्नमेंट थी कांग्रेस की और दिल्ली में भी जो गवर्नमेंट थी वो कांग्रेस की ही थी।
ये वो टाइम था जब बहुत बड़े-बड़े करप्शन के केसेस सामने आ रहे थे जैसे कॉमनवेल्थ गेम्स स्कैम, 2जी स्पेक्ट्रम स्कैम। कॉमनवेल्थ गेम्स स्कैम ये तो हुआ भी दिल्ली में था। कॉमनवेल्थ गेम्स प्रोजेक्ट में 70,000 करोड़ रु खर्च हुए पूरे प्रोजेक्ट में। हालांकि जो स्टार्टिंग में अमाउंट तय हुई थी वो सिर्फ 800 करोड़ तय हुई थी। एनालिस्ट का मानना है कि एप्रोक्सीमेटली 10,000 करोड़ तक का स्कैम इस केस में हुआ था।
खैर, ये बहुत सारे स्कैम चल रहे थे और इंडिया में एक अलग ही मूवमेंट चल रहा था करप्शन के अगेंस्ट। जो गवर्नमेंट थी वो कांग्रेस की थी, और इंडिया के लोगों की नजरें थीं कांग्रेस गवर्नमेंट को करप्शन से भरी हुई गवर्नमेंट देख रहे थे। वहीं से निकल के आई आम आदमी पार्टी और वहीं से आम आदमी पार्टी का नाम यानी आम आदमी निकल के आया। यह मार्केटिंग के लिए भी बहुत तगड़ी चीज थी।
लोगों को यह फील करा रही थी कि जो पार्टी है वो आम आदमी की पार्टी है और लोग इन्फ्लुएंस भी हो रहे थे बहुत लार्ज स्केल पे लोग कैंडल मार्च निकाल रहे थे अन्ना हजारे के लिए। खैर उससे कुछ साल पहले एक मूवी आई थी नायक, अनिल कपूर की मूवी थी। उस मूवी में ये दिखाया गया था कि किसी भी इंसान को अगर पॉलिटिक्स को सुधारना हो तो उसे पॉलिटिक्स में एंट्री लेनी ही पड़ती है।
जब ये इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट चल रहा था तो एक इंसान सामने निकल के आया अरविंद केजरीवाल। अरविंद केजरीवाल और उनके साथ के जो स्टार्टिंग के लीडर्स थे उनका मानना था कि इंडिया में अगर करप्शन से लड़ना है जो पॉलिटिशियन करते हैं तो एक पॉलिटिकल पार्टी का होना जरूरी है। बिल्कुल नायक वाली की स्टोरी। धीरे-धीरे इंडिया अगेंस्ट करप्शन का जो मूवमेंट था वो धीरे-धीरे एक पॉलिटिकल पार्टी में कन्वर्ट होना शुरू हो गया।
आने वाले टाइम में दिल्ली में चुनाव भी थे 2013 में और आम आदमी पार्टी ने उस इलेक्शन को भी लड़ा। आम आदमी पार्टी के मेन इलेक्शन कैंपेन में एक सबसे इंपॉर्टेंट हिस्सा था जन लोकपाल बिल। आम जनता को अगर इंडिया की आम जनता की बात करी जाए तो जनता को यह लगता था कि अगर जनलोकपाल बिल पास हो जाता है और प्रॉपर तरीके से फंक्शन करने लग जाता है तो इंडिया में जो करप्शन है वो जड़ से खत्म हो जाएगा।
दिल्ली के इलेक्शंस आते हैं 2013 के और यह वो टाइम था जब कांग्रेस जो है वो धीरे-धीरे वीक होनी स्टार्ट हो चुकी थी। दूसरी पॉलिटिकल पार्टी जो मेजर पॉलिटिकल पार्टी थी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), वो स्ट्रांग हो रही थी। इस इलेक्शन में आम आदमी पार्टी पूरे देश को चौका देती है। दिल्ली की टोटल सीट्स थी 70। आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी बनती है, बीजेपी 32 सीट्स लेके आती है, और कांग्रेस को सिर्फ 8 सीट्स मिलती हैं।
आम आदमी पार्टी यहां सबको चौका देते हुए 28 सीट्स ले जाती है। यहां से यह फील आनी शुरू हो चुकी थी कि इंडिया की जो पॉलिटिक्स है उसमें रिवोल्यूशन आना स्टार्ट हो चुका है। लेकिन फिर भी 2013 के इलेक्शंस में 70 टोटल नंबर ऑफ सीट्स थी और गवर्नमेंट बनाने के लिए 36 सीटों की जरूरत थी। बीजेपी के पास सिर्फ 32 सीट्स थीं।
बीजेपी ने कहीं ना कहीं गवर्नमेंट फॉर्म करने से मना कर दिया। उनका इरादा गवर्नमेंट फॉर्म करने का नहीं था। इसका एक मेजर रीजन यह भी था कि 2014 में जनरल इलेक्शंस आने वाले थे। बीजेपी ने गवर्नमेंट फॉर्म नहीं की। अब बारी आती है आम आदमी पार्टी की। आम आदमी पार्टी के पास 28 सीटें थीं। कांग्रेस के पास 8 सीटें थीं। अगर दोनों मिल जाएं तो गवर्नमेंट फॉर्म हो सकती है।
आम आदमी पार्टी ने एक 18 पॉइंट एजेंडा सामने रखा। इस 18 पॉइंट एजेंडा में कुछ ऐसी चीजें सम्मिलित करी गईं जिन पे कांग्रेस का एग्रीमेंट लिया गया। फाइनली कांग्रेस इसको सपोर्ट दे देती है और आम आदमी पार्टी गवर्नमेंट फॉर्म कर लेती है। यह जो 18 पॉइंट्स वाला एजेंडा था, इसमें कुछ इंपोर्टेंट चीजें थी जैसे जन लोकपाल बिल जो है वो 15 दिन के अंदर ही पास होना चाहिए।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की गवर्नमेंट बनने के बाद, जनता को यह समझाना कि 18 पॉइंट्स एजेंडा के बेसिस पर गवर्नमेंट फॉर्म करी गई है, ये इनफ नहीं था। कहीं ना कहीं इंडिया की जो जनता है वो इस बात को लेकर बहुत गुस्सा थी कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ अलायंस फॉर्म कर लिया।
28 दिसंबर 2013 को आम आदमी पार्टी की गवर्नमेंट बनने के बाद, 49 दिन बाद अरविंद केजरीवाल डिसाइड करते हैं कि वो गवर्नमेंट हटा देंगे। वो एलायंस तोड़ देंगे। यह एक पॉलिटिकल नजर से बहुत ही रिस्की स्टेप होता है। लेकिन यह अरविंद केजरीवाल को बहुत ज्यादा फायदा देके जाता है।
फरवरी 2014 की बात है जब एलायंस टूटता है और दिल्ली गवर्नमेंट जो है वो हट जाती है। दिल्ली पे प्रेसिडेंट रूल लग जाता है। लेकिन 2015 में री इलेक्शंस होते हैं। आम आदमी पार्टी 2014 के जनरल इलेक्शंस में कंपीट करती है और चार सीट्स जीत लेती है। हालांकि चार सीट बहुत कम हैं, लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी बिल्कुल नई फॉर्म हुई पॉलिटिकल पार्टी थी।
2015 के दिल्ली के दोबारा से लेजिस्लेटिव इलेक्शंस में आम आदमी पार्टी ने ऐसा परफॉर्म किया जो पूरे देश को चौंकाता है। टोटल 70 में से 67 सीटें आम आदमी पार्टी जीत जाती है। अरविंद केजरीवाल फिर से चीफ मिनिस्टर बनते हैं।
आम आदमी पार्टी ने प्रॉमिस किया था कि वो एजुकेशन, हेल्थ, इलेक्ट्रिसिटी, सिटी वोटर और जो बेसिक फैसिलिटी है उन पर काम करेंगे। और ऐसा भी हुआ। केजरीवाल गवर्नमेंट के पावर में आने के जस्ट बाद 200 यूनिट तक बिजली माफ कर दी जाती है। इलेक्ट्रिसिटी लगभग 20,000 लीटर तक जो पानी था वो फ्री कर दिया जाता है।
दिल्ली गवर्नमेंट स्कूल्स की जो कंडीशंस थी, उसे बहुत बेहतरीन तरीके से चेंज करा जाता है। आम आदमी पार्टी ने फंडिंग्स में कमी के बावजूद अच्छे कार्य किए। लेकिन इसके साथ-साथ आम आदमी पार्टी को यह भी समझ आ गया था कि उन्हें रेवेन्यू बढ़ाने की जरूरत है।
जैसे-जैसे टाइम गुजरता गया, अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को यह रिलाइज होना शुरू हो चुका था कि हमें रेवेन्यू बढ़ाने की जरूरत है। दिल्ली में जो रोड थी उनका जो ट्रैफिक था वो बढ़ता जा रहा था।
दिल्ली की गवर्नमेंट ने कई प्रोजेक्ट्स शुरू किए थे लेकिन उनमें से कई प्रोजेक्ट्स समय पर पूरे नहीं हुए। जैसे ओखला का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, जो 2017 में लॉन्च हुआ था, वह 2024 में भी चालू नहीं हुआ।
दिल्ली गवर्नमेंट ने कई उपाय किए जैसे ओड ववन रूल। लेकिन इन उपायों का पोल्यूशन पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। 2023 में दिल्ली के गवर्नर ने एक लेटर लिखकर कहा कि अरविंद केजरीवाल के रेसिडेंस पर अनावश्यक पैसा खर्च किया जा रहा है।
सीबीआई जांच शुरू हुई और पता चला कि रिनोवेशन में 45 करोड़ तक का खर्चा आया है। यह सब आम आदमी पार्टी के लिए एक नया संकट बन गया।
2024 के जनरल इलेक्शंस में, अरविंद केजरीवाल को बेल मिली। उन्होंने चुनाव कैंपेनिंग शुरू की, लेकिन बीजेपी ने सभी सीटें जीत लीं। केजरीवाल ने सीएम की पोस्ट छोड़ने का निर्णय लिया। आम आदमी पार्टी का जो रिवोल्यूशन लाने का इरादा था, वह एक नई दिशा में जा रहा था।
आम आदमी पार्टी का यह सफर करप्शन के खिलाफ एक आंदोलन से शुरू हुआ था, लेकिन अब यह खुद करप्शन के मसलों में फंसी हुई दिखाई देती है। यह एक हर्ट ब्रेकिंग स्थिति है क्योंकि पार्टी का जन्म ही करप्शन के खिलाफ लड़ाई में हुआ था।
आज के लिए आपके लिए इतना ही। आगे की बातें जारी रहेंगी।
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